"सभी कष्टो का कारण है मोह"
लोग मोह के नशे में इतने लिप्त है किन इश्वर को भूल जाते है जिसे पत्थर में उकेर के पूजते है लेकिन अपने अन्दर महसूस कर भी नहीं चाहते है और इस जीवन को आनंद से गुजारने के बजाय मन की मोह माया में पद कर दुःख ही दुःख में किसी तरह जीते चले जाते है | न हमें अपने आपका पता है न हमारे जीवन का फिर हमारे आने और जाने का क्या मतलब है | फिर दुःख कैसा | एक स्वामीजी कहते है की मोह के नशे में पड़े अर्जुनको कृष्ण की बाते समाज में नहीं आती थी तो उन्होंने सख्ती से समजाते हुए कहा की तुम इसे लोगो के लिए रो रहे हो जो पहले से ही मरे हुए है | जो लोग मन और इद्रियों से प्राप्त दुःख या दुःख से प्रभावित नहीं होता वोही सुखी होता है | और इसके लिए जीवनमे मोह का त्याग और सहनशीलता को अपनाना जरुरी है |
Friday, December 11, 2009
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